वोह ज़िन्दगी ही क्या जो मझदार में ना हो,
वोह कश्ती ही क्या जो डगमगाये नहीं।
ज़िंदगी एक बर्फ़ की कश्ती की तरह ही तोह है,
जो पानी में चले तोह दूरी तय कर जाये,
ना चले तोह पिघल जाए।
हर कश्ती का भी अपना तजुर्बा होता है,
ज़िन्दगी सिर्फ तुफानो से घिरी हो ऐसा ज़रूरी नहीं।
– (c) Boringbug
***
Share this blog post with a friend!
Leave a Reply